दखल प्रकाशन से छपी किताब की रॉयल्टी को लेकर लेखक शम्सुल इस्लाम और प्रकाशक-अनुवादक अशोक कुमार पाण्डेय के बीच विवाद पर यूट्यूबर श्याम मीरा सिंह ने लगाए गंभीर आरोप, अशोक पाण्डेय ने कहा- “सब झूठ, लीगल कार्रवाई करेंगे।”
दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर और चर्चित लेखक शम्सुल इस्लाम की किताब के हिन्दी अनुवाद की रॉयल्टी को लेकर शुरू हुए विवाद ने सोशल मीडिया पर खूब चर्चा बटोरी है। यूट्यूबर और पत्रकार श्याम मीरा सिंह ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व ट्विटर) पर कई पोस्ट कर दावा किया कि लेखक अशोक कुमार पाण्डेय ने शम्सुल इस्लाम की किताब का हिन्दी में अनुवाद छापकर उनकी रॉयल्टी हड़प ली और अंत में कोर्ट के आदेश के बाद भुगतान करने पर मजबूर हुए।
श्याम मीरा सिंह के मुताबिक, यह किताब शम्सुल इस्लाम ने मूल रूप से अंग्रेज़ी में लिखी थी और अशोक कुमार पाण्डेय ने अपने प्रकाशन “दखल प्रकाशन” से उसका हिन्दी अनुवाद छापा। श्याम ने आरोप लगाया कि किताब के कई संस्करण आए, लेकिन शम्सुल इस्लाम को रॉयल्टी नहीं दी गई। उन्होंने लिखा:
“DU में प्रोफेसर रहे शम्सुल इस्लाम ने गोलवलकर पर अंग्रेज़ी में किताब लिखी। इस किताब को अशोक कुमार पाण्डेय ने अपने प्रकाशन से हिन्दी में छापा और जो रॉयल्टी आई, अकेले खा ली। शम्सुल जी कई साल रॉयल्टी माँगते रहे और अंत में कोर्ट गये। कोर्ट ने अशोक कुमार पाण्डेय को आदेश दिया कि ईमानदारी से रॉयल्टी दें।”
श्याम मीरा सिंह ने दावा किया कि कोर्ट के कई पेशियों के बाद अशोक कुमार पाण्डेय को रॉयल्टी चुकानी पड़ी और उन्होंने सेटलमेंट करके मामला खत्म किया। श्याम ने कई तीखे सवाल भी उठाए:
- अगर किताब शम्सुल इस्लाम की थी ही नहीं, तो उनके नाम से क्यों छापी?
- अनुवादक होने के नाते पूरी रॉयल्टी क्यों ली?
- कोर्ट में किसने केस किया और किसने अंत में समझौता किया?
- अगर सही थे तो पैसे देकर मामला क्यों निपटाया?
श्याम मीरा सिंह ने अपनी पोस्ट में कोर्ट के आदेश का स्क्रीनशॉट भी साझा किया और लिखा कि अशोक कुमार पाण्डेय की लीगल टीम अब नोटिस भेजने की बात कर रही है।
शम्सुल इस्लाम की टिप्पणी
श्याम मीरा सिंह के मुताबिक, खुद शम्सुल इस्लाम ने भी उनके पोस्ट पर कमेंट कर अपनी बात रखी और आरोप लगाया कि जब उन्होंने रॉयल्टी मांगी तो अशोक कुमार पाण्डेय ने “गुंडों की तरह” व्यवहार किया और कोर्ट जाने को मजबूर किया। उन्होंने लिखा कि अशोक कुमार पाण्डेय ने आखिर में कोर्ट में सेटलमेंट किया और रॉयल्टी का भुगतान किया।
अशोक कुमार पाण्डेय का जवाब
इन आरोपों पर लेखक, अनुवादक और प्रकाशक अशोक कुमार पाण्डेय ने भी सोशल मीडिया पर अपनी सफाई दी। उन्होंने श्याम मीरा सिंह के आरोपों को “झूठ” करार दिया और कहा:
“एक और झूठ। जब इतिहास की बहस में हारे तो झूठ का सहारा लेने लगे। कड़कड़डूमा कोर्ट में केस चला था। अंत में शम्सुल इस्लाम ने समझौता किया।”
उन्होंने यह भी कहा कि जिस किताब की बात हो रही है, उसमें 70% हिस्सा आरएसएस के विचारक एम.एस. गोलवलकर की मूल अंग्रेज़ी किताब We or Our Nationhood Defined का सीधा अनुवाद था, जिसमें शम्सुल इस्लाम की 30% टिप्पणी थी। अशोक पाण्डेय के मुताबिक, पूरा अनुवाद कार्य उन्होंने किया था और उन्होंने शम्सुल इस्लाम की टिप्पणियों का भी अनुवाद किया था।
कोर्ट में सेटलमेंट की बात पर सफाई
अशोक कुमार पाण्डेय ने कहा कि कोर्ट में सेटलमेंट हुआ था, लेकिन उन्होंने यह नहीं माना कि श्याम मीरा सिंह के आरोप सच हैं। उन्होंने श्याम से कोर्ट का ऑर्डर दिखाने को भी कहा।
उन्होंने अपने पोस्ट में लिखा:
“अब जो कहना/करना है, मेरी लीगल टीम करेगी।”
सोशल मीडिया पर बहस तेज
यह पूरा विवाद सोशल मीडिया पर हिन्दी लेखन, अनुवाद, बौद्धिक संपदा अधिकार और प्रकाशन में पारदर्शिता जैसे सवालों को फिर से चर्चा में ले आया है। एक तरफ श्याम मीरा सिंह अशोक कुमार पाण्डेय पर गंभीर आरोप लगा रहे हैं कि उन्होंने लेखक की मेहनत का हक मारा और कोर्ट से हारकर पैसे देने पड़े। दूसरी तरफ अशोक पाण्डेय इसे झूठा प्रचार बता रहे हैं और लीगल एक्शन की बात कर रहे हैं।
फिलहाल यह मामला सोशल मीडिया पर तीखी बहस का कारण बना हुआ है। श्याम मीरा सिंह का दावा है कि कोर्ट ने अशोक कुमार पाण्डेय को रॉयल्टी देने को मजबूर किया और यह मामला लेखकों के हक और प्रकाशकों की जिम्मेदारी को लेकर बड़ा सवाल खड़ा करता है। वहीं अशोक पाण्डेय ने इन आरोपों को सिरे से खारिज किया है और कानूनी कार्रवाई की चेतावनी दी है।
आगे यह देखना दिलचस्प होगा कि इस विवाद का कानूनी और सार्वजनिक विमर्श में क्या निष्कर्ष निकलता है।
भारत में किताबों पर रॉयल्टी का नियम
भारत में किताबों की रॉयल्टी का नियम पूरी तरह से कॉपीराइट एक्ट, 1957 (Copyright Act, 1957) और उससे जुड़े अनुबंध (Contracts) पर आधारित होता है।
साधारण भाषा में समझिए — रॉयल्टी वह फीस या भुगतान होता है जो लेखक को उसकी किताब की बिक्री या इस्तेमाल के बदले मिलता है। इसके अलावा, और भी कई बातें हैं जो भारत में किताबों की रॉयल्टी के नियम और व्यवहार को तय करती हैं, जैसे:
कॉपीराइट किसका?
- मूल लेखक के पास कॉपीराइट होता है।
- अगर लेखक ने प्रकाशक से कॉपीराइट ट्रांसफर कर दिया है (लिखित समझौते में), तो प्रकाशक के पास।
- ज्यादातर मामलों में लेखक और प्रकाशक के बीच एक पब्लिशिंग एग्रीमेंट बनता है जिसमें कॉपीराइट और रॉयल्टी की शर्तें लिखी जाती हैं।
रॉयल्टी दर (Royalty Rate)
- भारत में कोई “सरकारी फिक्स” दर नहीं है।
- यह लेखक और प्रकाशक के बीच की बातचीत से तय होती है।
- आमतौर पर 5%–15% तक होती है (कवर प्राइस या नेट सेल पर)।
- नए लेखकों को अक्सर 5–7%।
- स्थापित लेखकों को 10–15% या ज्यादा।
एडवांस रॉयल्टी
- कई प्रकाशक लेखक को एडवांस भी देते हैं।
- एडवांस = भविष्य की रॉयल्टी के खिलाफ एडवांस भुगतान।
- अगर किताब की बिक्री एडवांस से ज्यादा रॉयल्टी पैदा करती है, तो लेखक को आगे भी रॉयल्टी मिलती है।
अनुवाद और एडिशन
- अनुवाद का कॉपीराइट भी मूल लेखक के पास ही होता है, जब तक वह अनुवाद के अधिकार (Translation Rights) न बेच दे।
- अनुवादक को अलग फीस या रॉयल्टी मिल सकती है, पर मूल लेखक का हक बना रहता है।
- नए एडिशन छापने पर भी लेखक को रॉयल्टी मिलनी चाहिए (अगर कॉन्ट्रैक्ट में तय है)।
अनुबंध (Contract) का महत्व
- भारत में Publishing Agreement बहुत महत्वपूर्ण होता है।
- इसमें लिखा होता है:
- रॉयल्टी दर
- भुगतान की आवृत्ति (सालाना, छमाही)
- एडवांस
- अनुवाद / डिजिटल राइट्स / विदेशी राइट्स
- कोर्ट भी ऐसे विवाद में सबसे पहले अनुबंध देखता है।
कॉपीराइट एक्ट के प्रावधान
- कॉपीराइट एक्ट, 1957 लेखक के अधिकारों की रक्षा करता है।
- धारा 18: लेखक कॉपीराइट ट्रांसफर कर सकता है।
- धारा 19: ट्रांसफर लिखित समझौते में होना चाहिए।
- धारा 19A: विवाद की स्थिति में लेखक कोर्ट में जाकर न्याय मांग सकता है।
विवाद की स्थिति में
- लेखक सिविल कोर्ट में केस कर सकता है।
- कॉपीराइट बोर्ड (अब IPAB → हाई कोर्ट की जुरिस्डिक्शन) में भी रॉयल्टी विवाद ले जाया जा सकता है।
- कोर्ट अनुबंध की शर्तें, बिक्री रिकॉर्ड, भुगतान रिकॉर्ड देखकर फैसला करता है।
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